Friday 21 November 2014

रेडियो प्रोग्राम का फार्मेट


रेडियो प्रसारण की विभिन्न विधाएँ 
रेडियो उद्घोषणा- रेडियो आन होते ही हमारे घर में हमारे साथ एक और व्यक्ति उपस्थित हो जाता है, जिसे हमने देखा नहीं होता। जिससे हमारा कोई प्रत्यक्ष परिचय नहीं होता, पर फिर भी वह हमें अपरिचित नहीं लगता। वह हमसे बातचीत नहीं कर रहा होता, पर फिर भी लगता है जैसे बात-चीत हमसे हो रही हो। वह व्यक्ति उद्घोषक होता है। उद्घोषक प्रसारण की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है जो सारे प्रसारण तंत्र को श्रोताओं से जोड़े रखती है। एक सफल उद्घोषक में निम्न अर्हताएँ होनी चाहिए-
   1.  उपयुक्त स्वर
   2.  भाषा का ज्ञान
   3.  भाषा प्रयोग एवं लेखन में कुशलता
   4.  उच्चारण की शुद्धता
   5.  विभिन्न विषयों में ज्ञान एवं रुचि
   6.  पूर्वाभ्यास
   7.  परिचर्चा
   8.  प्रतिभागी
   9.  संचालक
2. कॉम्पेयरिंग
कॉम्पेयर का मतलब प्रस्तुतकर्ता होता है जो कार्यक्रम में अनौपचारिकता एवं आत्मियता भरने का कार्य करता है। कम्पोजिट कार्यक्रमों में वार्ता, भेंटवार्ता और संगीत जैसे कई प्रोग्राम होते हैं। कम्पेयर में निम्न गुण होने चाहिए-
   1.  कार्यक्रम के स्वरूप और लक्षित श्रोता से परिचय
   2.  प्रस्तुत करने वाले कार्यक्रम की सम्पूर्ण जानकारी
   3.  कार्यक्रम में रोचकता लाने का प्रयास
   4.  कार्यक्रम की समयावधि में प्रोग्राम समाप्त करने की क्षमता
   5.  कम्पेयर को अचानक उत्पन्न स्थितियों को संभालने की कला आनी चाहिए।
3. वार्ता
रेडियो प्रसारण में उपयोग होने वाली विधाओं में वार्ता सबसे प्रचलित विधा है। यह विधा सबसे नीरस मानी जाती है इसीलिए इसमें लेखन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वार्ता का अर्थ लेख या भाषण नहीं बल्कि संवाद और बातचीत होता है। रेडियो प्रसारण की इस विधा में दो पक्ष होते हैं एक वार्ताकार और दूसरा श्रोता। वार्तालेखन में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए-
   1.  लेखन में बातचीत की भाषा का उपयोग होना चाहिए।
   2.  वार्ता पढ़ने वाले को स्वयं लिखना चाहिए।
   3.  विषय की प्रस्तुति सरल होनी चाहिए।
   4.  सामान्यतः वार्ता 8 से 10 मिनिट की होती है। अतः लिखते वक्त समय का ध्यान रखना चाहिए।
   5.  लेखन में तारतम्यता और क्रमबद्धता होनी चाहिए।
4. रूपक या फीचर
पाश्चात्य विद्वान गिलगुड के अनुसारकोई कार्यक्रम जो मूलतः नाटक नहीं हैं पर श्रोताओं के लिए प्रस्तुती में नाटक जैसी तकनीक का प्रयोग करता है, रूपक है। अंग्रेजी में फीचर के लिए डॉक्यूमेंट्री शब्द का प्रयोग किया जाता है। रूपक निम्न प्रकार के होते हैं-
   1. संगीत रूपकइसमें आलेख पद्य में होता है तथा उसे संगीत में निबद्ध कर उसकी प्रस्तुति की जाती है या फिर आलेख गद्य में होता है, जिसमें काव्य के अंश भी होेते हैं।
   2. सोदाहरण रूपक- इस तरह के रूपक में, आलेख में विभिन्न तरह के उद्धरणों का प्रयोग होता है। ये उद्धरण कविता,लोकगीत या किसी के कथन के रूप में हो सकते हैं। विषय के  अनुसार उपयुक्त स्थान पर आलेख में इनका समावेश कर लिया जाता है।
   3.  इति वृत्तात्मक रूपक- इस तरह के रूपक व्यक्ति विशेष पर आधारित रहते हैं। इसमें व्यक्ति के कृतित्व, व्यक्तित्व, संस्मरण,घटनाओं आदि का समावेश रहता है।
   4.  विषय रूपक- सामयिक घटनाओं पर आधारित रहते हैं।
   5.  काल्पनिक रूपक- इसमें कल्पना एवं फेंटेसी की प्रधानता रहती है।
   6.  वृत्त रूपक- यह तथ्यों तथा प्रमाणों पर आधारित कोई सामयिक विषय या मुद्दा हो सकता है।
 5. रेडियो नाटक
रेडियो नाटक प्रसारण की एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय विधा है। रेडियो एक श्रव्य माध्यम है, जबकि नाटक दृश्य प्रधान विधा है। रेडियो नाटक में मंच पर कोई घटना नहीं घटती, जिसे देखा जा सके बल्कि संवादों को कुछ इस तरह से लिखा और बोला जाता है कि श्रोताओं को सुनते समय ऐसा लगे कि उनके समक्ष कोई रंगमंच पर नाटक खेला जा रहा है। रेडियो नाटक में अच्छा आलेख, कुशल निर्देशक, अच्छा कलाकार और उत्कृष्ट तकनीकी सुविधाएँ प्रस्तुति के लिए आवश्यक हैं।

   1.  रेडियो नाटक के विषय असीमित हैं लेकिन पौराड़िक, ऐतिहासिकमनोवैज्ञानिक, सामाजिक, पारिवारिक, सामयिक और मानवीय विषयों पर कई नाटक रेडियो पर प्रसारित किए जाते हैं।
   2  रेडियो नाटक लेखन के लिए लेखक के मस्तिष्क में श्रव्य माध्यम की समझ होनी चाहिए।
   3.  आलेख तैयार करने से पहले लेखक को प्रस्तुतकर्ता के साथ संवाद कायम करना चाहिए।
   4.  पात्रों का चित्रण विश्वसनीय तरीके से होना चाहिए।
   5.  संवाद की भाषा में प्रवाह होना चाहिए।
   6.  संवाद छोटे एवं नाटकीयता की संभावना से परिपूर्ण होना चाहिए।
   7.  नाटक विधा में ध्वनि का विशेष महत्व होता है। अतः इसका चयन सोच-समझ कर किया जाना चाहिए।
6. खेल कार्यक्रम
खेलों की लोकप्रियता बढ़ाने में रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। रेडियो से प्रसारित खेल कमेंट्री एवं समाचार काफी सुने जाते हैं। रेडियो प्रसारण के अधिकांश केन्द्र खेलों पर विशेष कार्यक्रम खेल-पत्रिका के रूप में प्रसारित करते हैं। इन कार्यक्रमों में खिलाड़ियों, विशेषज्ञों से भेंटवार्ता, किसी विशेष खेल की जानकारी, खेल-प्रश्नोत्तरी से श्रोताओं को रूबरू करवाया जाता है।
7. आँखों देखा विवरण
रेडियो प्रसारण के विकास ने रेडियो की विधाओं मेंे नए-नए आयाम जोड़े हैं। आरंभिक दिनों में प्रसारण स्टूडियो से होता था तथा घटनाएँ समाचार के रूप में श्रोता तक पहुँचती थी। कॉमेंट्री या आँखों देखा विवरण ऐसी विधा है, जो श्रोता को उस स्थान पर उपस्थित रहने जैसा आनंद देती है। यह जीवंत प्रसारण होता है जिसमें पल-पल नया घटित होता है, दृश्य बदलता है, नए विवरण जुड़ते हैं, अतः इसमें सामान्य प्रसारण सेे भिन्न तरह की परिस्थितियाँ तथा आवश्यकताएँ होती हैं-

      किसी घटना, समारोह या खेल का आँखों देखा विवरण देते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
   1.  समारोह का अधिकारिक क्रमवार विवरण प्राप्त करें
   2.  समारोह या आयोजन का पिछला इतिहास, आयोजन के उद्देश्य आदि की जानकारी।
   3.  प्रतिभागियों तथा आयोजकों के संबंध में विस्तृत एवं तथ्यात्मक जानकारी।
   4.  सहायक स्रोतों, समाचार-पत्र तथा अन्य संदर्भ स्रोतों से आयोजन  का पूर्व तथा वर्तमान विवरण।
   5.  समारोह स्थल तथा आस-पास के क्षेत्र का विवरण एकत्र करें। आयोजन सथल से जुड़े ऐतिहासिक या भौगोलिक तथ्य यदि कोई हों तो उसके संबंध में सूचना प्राप्त करें। संभव हो तो स्वयं आयोजन स्थल पर कार्यक्रम से पूर्व पहुँच जाएँ।
   6.  कार्यक्रम से जुड़े विस्तृत विवरण, जैसे- संगीत, वक्ता, विभिन्न, प्रस्तुतियो या अगर खेल की कमेंट्री हो तो खिलाड़ियों के विवरण, पुराने रिकॉर्ड आदि की जानकारी प्राप्त करें।
   7.  अपने स्तर पर सभी बातों की समुचित तैयारी कर लें।
   8.  सूचनाओं एवं जानकारी का एक व्यवस्थित क्रम बनाएँ।
   9.  खेल की कमेंट्री में खिलाड़ियों के विवरण, उनके नाम के अनुसार वर्णमाला के क्रम में लगाए जा सकते हैं।
      कमेंटेटर को भाषा पर पूर्ण  अधिकार होना चाहिए। अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिए तथा बोलने में प्रवाह होना चाहिए। उसे हमेशा पूर्व  निर्धारित विषय तथा क्रम में नहीं बोलना होता। विशेषकर खेलों में हर पल दृश्य बदलता है। शब्दों का चयन उपयुक्त होना चाहिए तथा वाक्य संरचना सीधी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति भाव एवं शब्द चयन अवसर के अनुकूल होना चाहिए।
      समारोह या घटना के पूर्व समारोह स्थलआयोजन, आयोजकों आदि की जानकारी श्रोताओं को दे देनी चाहिए। उपयुक्त अवसर पर चुप रहकर, अंतराल देकर घटनास्थल की गतिविधियों को, हलचल को श्रोता तक ध्वनियों के माध्यम से विवरण देते समय सलामी का आदेश, किसी लोक नर्तक जत्थे का संगीत के साथ गुजरना, संगीत के साथ बच्चों का नृत्य, आकाश में विमान का उड़ना।
      विभिन्न अवसरों का आँखों देखा हाल रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे त्रुटियों को दूर किया जा सकता है। महत्वपूर्ण अवसरों की रिकॉर्डिंग का आर्काइब्ज के लिए भी महत्व है।


tv reporting / समाचार के तत्व




समाचार के तत्व
1. नूतनता- समाचार में सदैव नूतनता हो। विलम्ब से प्रकाशित घटनाएँ पाठकों को आकर्षित नहीं करती हैं।
2. सत्यता- घटनाएँ सत्य पर आधारित होंसत्य हों और उनका विवरण निष्पक्ष भाव से दिया गया हो।
3. समीपता- दूर की बड़ी से बड़ी घटना को उतना आकर्षित नहीं करती जितना एक छोटी-सी घटना जो पाठक समाज के निकट घटित हुई हो।
4. सुरुचिपूर्ण- समाचार पाठकों की रुचि के अनुसार होने चाहिए।
5. प्रभावित लोग- यदि किसी घटना या दुर्घटना से एक विशाल जनसमूह प्रभावित होता हैउससे एक बड़े समाचार को जन्म मिलता है। उदाहरण के लिए-गुजरात में आए 26 जनवरी के भूकम्प ने सभी समाचार-पत्रों के मुखपृष्ट पर भूकम्प से प्रभावित लोगों के समाचार को प्रकाशित किया।
6. रहस्य- रहस्यात्मक समाचार पाठकों को आकर्षित करते हैं।
7. वैयक्तिकता- सामान्य नागरिक की विशेष उपलब्धि एक बड़ा समाचार बन सकती है। जैसे किसी फकीर की लाखों की लाटरी का खुलना।
समाचार के स्रोत
कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती हैजो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददातासमाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती है कि जिले में घूम-घूम कर दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँदेश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों को प्रकाशन के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. भारत,यू.एन.आई.भारत.पी. अमेरिका.एफ.पी. फ्रान्सरायटर ब्रिटेन।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँसरकारी विभागसार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्टान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर समाचार-पत्र के कार्यालयों में प्रकाशन के लिए भेजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
 () प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस  कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवष्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ और सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नामस्थान और निर्गत करने की  तिथि अंकित होती है।
 () प्रेस रिलीज- शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र के कार्यालयों को प्रकाषनार्थ भेजे जाते हैं। जैसे रेल भाड़ा अथवा  ब्याज-दरों में वृद्धि।
 () हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट    के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
 () गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी  गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।
4. पुलिस विभागसूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होने वाली सभीघटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती हैजिसे पुलिस-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभागपुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनी उपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाषन हेतु समाचार-पत्र कार्यालयों को भेजते रहते हैं।

6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कारपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं।
8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कारविभागाध्यक्षों अथवा व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फालो-अप या अनुवर्तनमहत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। पाठक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है।
11. पत्रकार वार्तासरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
 उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभासम्मेलनसाहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रमविधानसभासंसदमिल,कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती हैसमाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।
समाचार वर्गीकरण
समाचार के वर्गीकरण के सम्बन्ध में विद्वान पत्रकार एवं लेखक एकमत नहीं हैं। उनके अनुसार समाचारों का वर्गीकरण मूलतः निम्न चार आधारों पर न्यासंगत हो सकता है-
1. सामान्य वर्गीकरण
सामान्य वर्गीकरण के अंतर्गत विभिन्न समाचारों को चार श्रेणी में रखा जाता है-
1. कठोर समाचार- ऐसे समाचार जिनको किसी भी दशा में रोका नहीं जा सकताकठोर समाचार कहलाते हैं। इनका प्रकाशन घटना वाले दिन ही हो जाना चाहिए।
2. घटनात्मक समाचार- यह समाचार किसी ऐसी घटना से सम्बन्धित होते हैंजिसका प्रकाशन घटना वाले दिन ही होना आवश्यक होता है। अगले दिन इस समाचार का प्रकाशन होता  है। मार्ग दुर्घटनाएँहत्या,आत्महत्या तथा अन्य ऐसे ही समाचार इस श्रेणी में आते हैं।
3. सहज समाचार- इस श्रेणी में ऐसे समाचार आते हैंजिनको एक दिन बाद भी प्रकाशित किया जाए तो कोई हानि नहीं होती। शोध कार्यसाक्षात्कारविशेष रपट इस श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
4. फीचर आलेख- किसी वस्तुव्यक्ति या स्थान के सम्बन्ध में मनोरंजनात्मक लेख अथवा रपट कभी भी प्रकाशित किए जा सकते हैं। इनकी उपयोगिता अपेक्षाकृत दीर्घकाल तक बनी रहती है।
2. समाचार-प्रकृति पर आधारित वर्गीकरण
कुछ विद्वान समाचारों का वर्गीकरण उनकी प्रकृति के आधार पर करते हैं। उनके अनुसार अग्रांकित आठ प्रकार के होते हैं-
1. खोजपरक- इस श्रेणी के समाचारों को ढूँढ़ निकालने में संवाददाता को अथक प्रयास करना पड़ता है तथा धन और समय का भी व्यय होता है। सामान्यतः यह समाचार प्रकाशित होने के बाद सम्बन्धित व्यक्ति और यहाँ तक कि सरकार को भी हिलाकर रख देती है। इन समाचारों को ढूँढ़ना और उनका प्रकाशन करना जोखिम-भरा कार्य है।
2. ज्ञानवर्धक समाचार- किसी वस्तुविषय या स्थान के बारे में पाठकों को जानकारी प्रदान करने वाले समाचार इस श्रेणी में रखे जाते हैं।
3. विवरणात्मक समाचार- ऐसे समाचार जिनमें लेखक विषय या घटना की गहराई तक जाकर उसके बारे में तथ्यों पर आधारित विस्तार से रिर्पोट देता है,  इस श्रेणी में आते हैं।
4. मनोरजंनात्मक समाचार- ऐसे समस्त समाचार जिनका मूल लक्ष्य पाठकों का मनोरंजन करना होता है,मनारंजनात्मक समाचार कहलाते हैंजैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रकाशन।
5. सनसनीखेज समाचार- इन समाचारों का उद्देश्य पाठकों के अन्तः मन को उद्धेलित कर देना होता है।सामान्यतः यह समाचार किसी बड़े अन्याय अथवा जघन्य घटना से संबंधित होते हैं।
6. विचारोत्तेजक समाचार- ऐसे समाचारों का उद्देश्य पाठकों को कुरीतियोंभ्रष्टाचार और अन्याय के प्रति सजग करना होता है। इन समाचारों को प्रकाषित कर पाठकों से आशा की जाती है कि वह समाज में पनप रही गलत प्रवृत्तियों के दम के लिए सषक्त मानसिकता का निर्माण करें।
7. भावनात्मक समाचार- इन समाचारों में सूचनाओं की अपेक्षा मानवीय पक्ष प्रभावी होता है। इसमें किसीव्यक्ति अथवा अन्य प्राणिमात्र की दयनीय स्थिति का वर्णन होता है। समाचार का उद्देष्य पीड़ित पक्ष के लिए सहानुभूति और सहायता की अपेक्षा निहित होती है।
8. शोधपरक समाचार- किसी भी क्षेत्र में होने वाले षोध कार्यों को जन-सामान्य तक पहुँचाकर उनको षोध के लाभों से अवगत कराना होता है।
3. पत्रकारिता की दृष्टि से वर्गीकरण
1. सहज समाचार- दिन-प्रतिदिन घटित होने वाली ऐसी घटनाएँ जिनकी जानकारी प्राप्त करने के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती हैसहज समाचार कहलाते हैं। जैसे मार्ग दुर्घटनाएँअपराध और मौसम आदि की घटनाएँ।
2. व्याख्यात्मक समाचार- विष्लेषणात्मक समाचारजिनमें लेखक किसी विषय का किसी अन्य भाषा में रूपान्तर करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता हैइस श्रेणी में आते हैं। इन समाचारों को लिखने के लिए लेखक को विषय का वृहद् ज्ञान आवश्यक होता है। लेखक को यह भी अधिकार  नहीं होता है कि वह दिए गए तथ्य को घटाकर या बढ़ाकर प्रस्तुत करे।
3. मानवीय रूचि पर आधारित समाचार- यह समाचार सामान्यतः भाव और भावनाओं को उकेरते हैं और पाठकों की विशेष रुचियों के अनुरूप लिखे जाते हैं।
4. अन्य वर्गीकरण
विकास गति के साथ-साथ समाचार के नए-नए आयामों को जन्म मिलता है। विकासोन्मुख समाज की प्रगति में सहायक व्यक्तिविषय स्थान समाचार का आकर्षण केन्द्र बन जाता है। यह सहायक तत्व सीमा विहीन होते हैं। वर्तमान समाज में ऐस तत्व जो समाचार-पत्र  पत्रिकाओं में महत्व के विषय हैंवह निम्न हैं-
 (1) खेल, (2) साहित्य, (3) स्वास्थ्य, (4) चिकित्सा, (5) व्यापार, (6) परिवार, (7) नगर, (8) राष्ट्र, (9) अन्तरराष्ट्रीय गतिविधियाँ, (10) परिवहन, (11) विज्ञान, (12) मेले या पर्व, (13) श्रमिक, (14) कृषि किसान, (15) मौसम, (16)भूकम्प, (17) रंग-भेद वर्ण-भेद, (18) जातीयता क्षेत्रीयता, (19) फैषन, (20) सेक्स, (21) शिक्षा और, (22) उच्च तकनीक।
 उपर्युक्त समस्त विषयों पर समाचार-पत्रों पत्रिकाओं में जानकारियाँ दी जाती हैं। इसके अतिरिक्त,समाचार-जगत् का निरन्तर विकास हो रहा है और इसकी परिधि में नित्य नए विसय विधाएँ सिमटती जा रही हैं।
समाचार संपादन
समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
संपादन की प्रक्रिया-
रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है।
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन
             रेडियो के किसी भी स्टेशन में खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाताफोनजनसंपर्क,न्यूज एजेंसीसमाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। निम्नलिखित स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है।  यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल या प्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात चयनितखबरों का भी संपादन किया जाना आवष्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15 मिनिट होती है।
संपादन के महत्वपूर्ण चरण
1.   समाचार आकर्षित होना चाहिए।
2.   भाषा सहज और सरल हो।
3.   समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4.   समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के षब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5.   शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6.   समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7.   कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8.   रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना चाहिए।
9.  संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होतेइस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विषेष ध्यान देने की आवश्यकता होती हैताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।

समाचार संपादन के तत्व
संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी समाचार की शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से केवल पाठक किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता हैअपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। षीर्सक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
 1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए।
 2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पस्ट हो। उसमें पाठकों को आकर्षित करने की क्षमता हो।
 3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल में लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
 4.  शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड काॅमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कामा अधिक स्थान घेरते हैं।
 5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षक के पहले ’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षक पर भी लागू होता है।
 6.  शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
 7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
 8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।   
2. आमुख- आमुख लिखते समय पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न5 w तथा 1h का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरषः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में20 से 25 शब्द होना चाहिए।
3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। पाठकों की रुचि काअध्ययन करने से पता चला है कि अधिक लम्बे समाचार उन्हें आकर्षित नहीं करते हैं।

 समाचार के सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
 1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
 2. समाचार समाचार-पत्र की नीति के अनुरूप हो।
 3. समाचार तथ्याधारित हो।
 4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
 5. समाचार की भाषा पुस्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा पुस्ट नहीं है तो उसे पुस्ट बनाएँ।
 6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुनर्लेखन के लिए वापस कर दें।
 7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज हो।
 8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
 9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाएजिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
 10.समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
 11.गलत तथ्यों में समुचित सुधार किया जाए।
 12.समाचार की भाषा व्याकरण की दृस्टि से अशुद्ध हो।
 13.वाक्यों में आवश्यकतानुसार विरामअर्द्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत् में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोस।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों अधिकारियों के नाम पते फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
Teleprompter
टेलीप्रॉम्पटर
सन् 1950 में फ्रेड बॉरटनहर्बर्ट और इरबिन्ग बरलिन ने टेलीप्रॉम्टर कंपनी की शुरूआत की थी। बॉरटन एक एक्टर थे जिन्होंने स्क्रिप्ट को कम समय में याद रखने वाली एक मशीन का सन् 1950 में फ्रेड बॉरटनहर्बर्ट और इरबिन्ग बरलिन ने टेलीप्रॉम्टर कंपनी की शुरूआत की थी। बॉरटन एक एक्टर थे जिन्होंने स्क्रिप्ट को कम समय में याद रखने वाली एक मशीन का कॉन्सेप्ट दिया था। ताकि बॉरटन को डॉयलॉग याद करने में दिक्कत नहीं हो। सन् 1982 में पहला कम्प्यूटर आधारित टेलीप्रॉम्पटरकॉरटनी एम.गुडबिन और लॉरेन्स अब्रेम द्वारा बनाया गया। इसी कम्पनी का नाम बाद में प्रो-प्रॉम्ट इन कार्पोरेशन कर दिया गया। पिछले छब्बीस सालों से यह कंपनी सफलता पूर्वक टेलीप्रॉम्टर सर्विस देने में अग्रणी है। इसके अलावा क्यू टीवी और टेलीस्क्रिप्ट कंपनियाँ भी टेलीप्रॉम्टर बनाने का काम कर रहीं हैं। पहली बार सन् 1992 में बनी एक फिल्म में टेलीप्रॉम्टर का उपयोग किया गया।

 टेलीप्रॉम्टर निम्नलिखित भागों से मिलकर बनता है-
   1.  इलेक्ट्रॉनिक स्पीच नोट्स
   2. क्यू डिवाइस
   3. आईडियोट बोल्ड
   4.  प्रॉम्टर
   5. आटो क्यू
            टेलीप्रॉम्टर में आगे की ओर लगे स्क्रीन पर लिखित स्क्रिप्ट  विपरीत दिशा में होती है। इस स्क्रीन केऊपर एक ग्लास लगा होता हैजिस पर स्क्रीन पर दिखने वाला मैटर सीधा दिखाई देता है। इस ग्लास के पीछे तरफ एक कैमरा जुड़ा रहता है जो एंकर को रिकॉर्ड करता है। समाचार पढ़ते समय एंकर अपने सामने लगे टेलीप्रॉम्टर पर देखकर पढ़ता है और प्रॉम्टर के पीछे लगा कैमरा विजुअल को रिकॉर्ड कर प्रोड्क्शन रूम में भेज देता है। टेलीप्रॉम्टर में लगे क्यू डिवाइस का कंट्रोल एंकर के हाथ में होता हैजिससे वह अपने अनुसार स्क्रिप्ट को गति देने का कार्य करता है।




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